Saturday, November 10, 2007

इक नज़्म

ये राह बहुत आसान नहीं,
जिस पे हाथ छुड़ा कर तुम
यूं तनहा चल निकली हो
इस खौफ़ से शायद राह भटक ना जाओ कहीं
हर मोड़ पर मैनें एक नज़्म खड़ी कर रखी है !

थक जाओ अगर ---------
और तुमको ज़रूरत पड़ जाये,
इक नज़्म की उंगली थाम के वापस आ जाना !

----------ghulzaar saab