Thursday, July 2, 2009

मेरे साथ भी कोई रहता है……

परछाइं बनके चल देती,

किताबों के पन्नो से फ़िसलती,

आपकी तस्वीरों से गिरती,

कभी सर-ए-शाम नुक्कड पे

हँस देती……


यूं ही सडक पे घूमती…

छत पे,

मुन्डेर पे ,

चौखट पे यकायक,

उडती ही फ़िरती बस,

अभी देखो…


बस अभी,

मेरे कांन्धे से सट के गुज़री है,

कुछ जानी देखी सूरत है,


अब मेरे साथ ही चलती है,

हर रात कहानी बुनती है,

हाथ पकड़ कर घड़ियों का,

घन्टों बातें करती है,


आंखों में गीली मिसरी है,

कुछ यादें भूली बिसरी हैं,

इस कागज़ पे बिखरी हैं,


हर लम्हा बस कहता है,

मेरे साथ भी कोई रहता है,

गम के आंसू पीकर वो,

मेरे पास सिसकता कहता है,

मेरे साथ भी कोई रहता है……