Friday, May 21, 2010

पोटली

एक गैरकानूनी शाम की बात है,

लखनऊ से चला,
दिल्ली से छूटा,
मुम्बई भी निकल गया,
रेलगाड़ी रुकी,
अहमदाबाद खड़ा था,

मोबाइल खींचा,
कहा:
'भाई आज रात'

बस फ़िर क्या था,
सूखे के इस दौर में,
तरावट की चाह जगी,
बन्टी भाई का बयाना हुआ,
लन्डी लन्डी* का फ़साना हुआ,

ढली जो शाम तो,

ढक्कन में कसी,
बोतल में फ़ंसी,
और बस्ते में दबी,


750 मि ली,
पुरानी यादें,
कुछ घूंट मोहब्बत,
थोड़े शिकवे,
सौ नखरे,
ढेरों आंसू,
एकाध कसक,
दोस्ती के किस्से,
और
पूरा लखनऊ शहर,
मैं'खरीद'लाया हूँ,

गांधी जी के देस में,
फ़िरन्गी ठर्रे के टेस्ट में,
देसी गाने गायेंगे,
गुलाम अली साहब तो रेगुलर हैं,
आज जगजीत को भी बुलायेंगे,

आज की शाम घुसन्ड* रंगीन होगी,
बेईमानों के लिये कोल्ड ड्रिन्क होगी,
मज़े की बात है यारों,
ये रंगीनियत,
दोगुनी महंगी,
और गैरकानूनी होगी,

सुना है
अब तो डिगरी बंटने वाली है,
रोज़गार की लाइन में सब हैं,
लव मैरिज की आस में सब हैं,
टिकट भी ले लिया हैगा ट्रेन का,

अब बस पैकिंग भर बाकी है,
इस बिछोह के दौर में,
कुछ गैरकानूनी पल,
पोटली में बांध रहा हूँ,
सब लोग ले जाना सफ़र में,

रस्ता काफ़ी लम्बा है,
किसी शाम खोल के इनको,
पी लिया करना,
बस थोड़ा सा मुझको भी,
जी लिया करना ......




*लन्डी लन्डी ~ slang (GCA special),contributing money for a common goal
*घुसन्ड ~ slang (GCA special), supreme, unmatched, beyond compare.

Wednesday, May 19, 2010

ख्वाब

मोहलत के ये पल हैं,
खूबसूरत सही पर कम हैं,
किवाड़ पे इन्तेज़ार बैठा है,
सिरहाना रोशनी से भीगा है,

चांदनी के रेशम में,
पलछिन मोती पोरे हैं,
पेशानी पर दिखते हैं,
ख्वाब ये सारे तोरे हैं,

मय के प्याले औंधे हैं,
उलझी रात ये आधी है,
मूंदी पलकें सोई हैं,
वीराने में खोई हैं,

ख्वाबों की ये दुनिया है,
कुछ धुंधली सी कड़ियाँ हैं,
यहाँ सहर होती ही नहीं,
कभी रात सोती ही नहीं,

बोतल भर इन्तेज़ार किया,
प्याली दर प्याली प्यार किया,
यूं खाली पैमाना रात जगे,
लुढके तोरी राह तके,

कांच की बोतल,
कांच के ख्वाब,
खाली प्याले खाली हाथ,
एक रात का सच्चा साथ,

मय का मैं और मेरी तुम,
मैं, मय, ख्वाब और तुम,
मय का ख्वाब,
ख्वाब में तुम......