Wednesday, November 17, 2010

नवम्बर के महीने में,
ये मुसलसल बरसात,
लगता है खुदा की भी माशूक,
आयी है लौट कर  दूर से कहीं,

तभी आज चाँद भी कुछ बड़ा नज़र आता है,
थोड़ा और करीब आ गया हो मानो,
जी करता है बस बढ़ा के हाथ,
भर लूँ ओक में उसको,

कहीं फ़िर सुबह ना हो जाये.........

Wednesday, November 10, 2010

अंधेरे की आदत

अंधेरे की आदत पड़ती नहीं,
और उजाले की आस,
ठोड़ी टिकाए बैठी है,

तेरे नाम का दिया जलाये,
सहर की ओर पीठ करके,
मुटठी भर लम्हे लिये बैठा हूँ,

एक ज़ंजीर सी पड़ी है पैरों में,
ना चल ही सकता हूँ,
और बैठने की तकलीफ़ बरदाश्त नही होती

Monday, November 1, 2010

किस ओर जा रही है ये ज़िन्दगी ऐ खुदा,
है इस क्या इस दर्द का हिसाब तू बता,
कहते हैं बस एक सफ़र इसको,
तो फ़िर है क्या मेरी मन्ज़िल ये बता,
अगर ये सब नाते झूठे ही हैं,
तो मैं मानूं क्यों तुझे भी ये बता