Saturday, March 27, 2010

पंकज

कमती यादें,
कितनी रातें,
आज लिखूँ मैं सारी बातें,

सारे झगड़े,
सारे गीत,
एक अजब सी अपनी प्रीत,

साथ में खोये,
साथ में रोये,
माँ के सारे बरतन टोये,

रोज़ की होली,
रोज़ दिवाली,
निकली शैतानों की टोली,

एक ही सैकल,
दोनों सवारी,
आधे पैसे की बेगारी,

जेब में ठन ठन,
बरफ़ का है मन,
आठ आने की दुनिया सारी,

एक ही कन्या,
दो दीवाने,
मन में चलते ताने-बाने,

आज लड़कपन,
परसों बड़प्पन,
साथ में देखी अब तक छप्पन,

कुछ दूर हुए,
कुछ साथ रहा,
बरसों का बचपन पास रहा,

पर ये आज कैसी दूरी है,
क्यूँ मेरी मजबूरी है,
जब तुम भइया कहते थे,
हाथ पकड़ कर चलते थे,

सब कुछ पीछे छूट गया,
मेरे दिल का टुकड़ा रूठ गया,
इक छोटे से झटके से,
जीवन का धागा टूट गया,

आज अकेला पहिया हूँ,
बिन पतवार खेवैइया हूँ,
अब नदी नहीं,
नाव नहीं,
अब मुझमें कोई भाव नहीं,

पर वो भी तो जीती है,
रोज़ाना आंसू पीती है,

वो मोती बनकर बहती है,
बस आंखों से ही कहती है,

तेरी आहट की बाट जोहती,
खामोशी भी सुनती है.........







Wednesday, March 24, 2010

कल सारी रात

कल सारी रात,
आपकी आंखों पर बीती,
बहका था चाँद भी कल रात,

आप करीब थे हमारे,
आपके केसुओं में उलझे वो लम्हे,
शब भर सुलझाता रहा,
अपनी उन्गलियों से मैं,

वो लम्हे आपके होंठों की छुअन से,
पिघल कर मेरे आंसूं बन पड़े हों जैसे,

हां कल गुज़री उस चांदनी रात में
गुज़र गया मैं भी,
उन्ही लम्हों की तरह,
जो आंखों से बह चले थे,

बहका हुआ है चाँद
आज रात भी,
के आप मेरे ख्वाब में आईं हैं,

और मेरे लम्हे फ़िर उलझ पड़े हैं,

हां कल सारी रात आपकी आंखों पर बीती.......

इन्तेज़ार

यूँ तो कई रातें,
आपके इन्तेज़ार की छड़ी के सहारे,
इन्ही चार दीवारों के दरम्यान,
अन्धेरों को टटोलते टटोलते गुज़ार दी है हमनें,
पर आज की ये रात,
बिछोने पर पड़ी सिलवटों के बीच गिरे,
कुछ मेरे ख्वाब ज़िन्दा हो गये हैं,
आज की ये रात कमबख्त खिसकती ही नहीं है,

मेरी हर सांस फ़ेफ़ड़ों से गले तक आते आते,
अपनी आंच से मेरे आंसुओं को,
बिखरने से पहले ही धुआं किये दे रही है।
और धुएं के ये छोटे छोटे बादल,
इसी नुकीली हवा में रुइ के फ़ाहों के मानिन्द,
इधर उधर बहक रहे हैं,

मेरे जले हुए आंसुओं की ओस के मोतियों के ज़ेवर पहन कर,
कल ज़र्रा ज़र्रा सूरज की रोशनी में इतरा उठेगा,
और तब,

मेरी सांस की तपन,
खिड़की के इस धुन्धले कांच पर,
मेरे जले हुए आंसुओं के धुएं से,

कल आने वाली रात का इन्तेज़ार फ़िर से लिख देगी,
के आज की ये रात तो कम्बखत खिसकती ही नहीं........