ये सभी रचनाएं मेरे अत्यंत करीब हैं,
कलम से कल्पना नही सीख पाया हूँ अभी,
जो कुछ भी लिखा है,
सब आप बीती ही है,
Saturday, February 28, 2009
रेत के ख्वाब
कल रात ख्वाब में खमोशी से रुबरु बात हुई आंखों की रेत में खुद को देखा वो रेत कहीं मेरी मुट्ठी फ़िसल ना जाए, इसलिए आज कल ख्वाबों पे बन्दिश सी लगा रखी है।
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