कमती यादें,
कितनी रातें,
आज लिखूँ मैं सारी बातें,
सारे झगड़े,
सारे गीत,
एक अजब सी अपनी प्रीत,
साथ में खोये,
साथ में रोये,
माँ के सारे बरतन टोये,
रोज़ की होली,
रोज़ दिवाली,
निकली शैतानों की टोली,
एक ही सैकल,
दोनों सवारी,
आधे पैसे की बेगारी,
जेब में ठन ठन,
बरफ़ का है मन,
आठ आने की दुनिया सारी,
एक ही कन्या,
दो दीवाने,
मन में चलते ताने-बाने,
आज लड़कपन,
परसों बड़प्पन,
साथ में देखी अब तक छप्पन,
कुछ दूर हुए,
कुछ साथ रहा,
बरसों का बचपन पास रहा,
पर ये आज कैसी दूरी है,
क्यूँ मेरी मजबूरी है,
जब तुम भइया कहते थे,
हाथ पकड़ कर चलते थे,
सब कुछ पीछे छूट गया,
मेरे दिल का टुकड़ा रूठ गया,
इक छोटे से झटके से,
जीवन का धागा टूट गया,
आज अकेला पहिया हूँ,
बिन पतवार खेवैइया हूँ,
अब नदी नहीं,
नाव नहीं,
अब मुझमें कोई भाव नहीं,
पर वो भी तो जीती है,
रोज़ाना आंसू पीती है,
वो मोती बनकर बहती है,
बस आंखों से ही कहती है,
तेरी आहट की बाट जोहती,
खामोशी भी सुनती है.........
Kuchh likhne ki chaah hai, magar lafz nahin mil rahe.
ReplyDeleteBass yehi kahenge ki pahiya kabhi akela nahin ho sakta.
very touchy dear.
ReplyDeleteaur kuch nahi kahunga siwaye itna ki u depicted superbly what u have feel from inside.