Tuesday, September 14, 2010

यादें

रंग तुम्हारी यादों के,
कुछ यूँ तासीर बदलते हैं
कभी दिल हमको बहलाता है,
कभी हम दिल को फ़ुसलाते हैं।  

इक बरफ़ीली सुबह का पाला,
नखलऊ की कम्बल ओढ़े है,
कुछ बेगम महल की यादें हैं,
औ कालेज के आंसू थोड़े हैं।

माँ से यूँ हंस कर शरमाना,
और प्यार का पहला लाल गुलाब,
छत पर जाके फ़ोन पे लड़ना,
दिखलाना शादी के ख्वाब।

चारबाग की चाय प्याली,
कैफ़े की काफ़ी भर याद,
झप्पी ट्रेन की खिड़की वाली,  
ऐयरपोर्ट पर पहली रात।

मोबाइल पर नैन मटक्का,
जी मेल पर बीते रैन,
दो शहरों की प्रेम कहानी,
हर दम मिलने को बेचैन।

अब हो ब्याह तो बात बने,
ये मांग हमारी जारी है,
हमसे चबवाये लौह चने,
अब हालत भी बेचारी है।
 
रंग तुम्हारी यादों के,
कुछ यूँ तासीर बदलते हैं
कभी दिल हमको बहलाता है,
कभी हम दिल को फ़ुसलाते हैं।

2 comments:

  1. har kamyab shayar ke peeche bhi ek ladki hi hoti hai.....iss "Nazm" ne iss vichar se ek bar fir Shakshatkar kara diya.....

    Behtareen.....Lajawab.......dil ko thandak Pai gayi dost......

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  2. read all the poems ,
    I'm speechless ..

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