Thursday, September 30, 2010

अभी बाकी है

कई खुदा हैं मेरे,
पर कलमा तेरे नाम का अभी बाकी है,

इस बेफ़िक्री को ना सोचना मेरी बेवफ़ाई तुम,
बस समझ लो यूँ कि इन्तेहाँ अभी बाकी है,

सफ़ा जो पलट दिया तो हुई क्या बात ज़ालिम,  
दास्तां-ए-मोहब्बत अभी बाकी है,

अमां हुई खतम बस स्याही है,
मेरी उन्गलियों में कुछ नज़्में अभी बाकी हैं,

बस मौजूं नहीं मिलता आज की रात कोई,
अन्दाज़-ए-बयां  तो अभी बाकी है।

2 comments: