Saturday, September 25, 2010

शिकायत

शिकायत है मुझे,
तुम्हारे ज़ुल्फ़ों में लगी,
उस नादान क्लिप से।

क्या तकदीर है हुज़ूर की,
जा बैठी है मेरे खुदा के माथे पर,
और उसपे अदा भी ऐसी,
खुद अपने ही हाथों से जो लगायी है तुमने।        

यूं तो मेरी कोई खास रंज़िश नहीं है उससे,
पर रोज़ सवेरे जब तुम,
गुज़रती हो उस गुलमोहर के दरख्त के नीचे से,
और उड़ती हैं हौले से यूँ ज़ुल्फ़ें तुम्हारी,
एक हवा के झोंके से।

तुम्हारे रुखसारों पर,
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों का वो लम्स्
मैं महसूस कर पाता हूँ आज भी।

अरमां बहुत हैं मेरे भी,
के बढ़ा के हाथ रोक लूँ उन ज़ुल्फ़ों को,
के छू ना पायें तुम्हारे नाज़ुक गालों को।

पर क्या करूँ,
ये नाचीज़ क्लिप,
साथ तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के,
बांधे डालती है मेरे अरमानों को भी।

हाँ मुझे शिकायत है,
तुम्हारी उस नादान क्लिप से ............

बहुत पहले लिखी थी ये कविता हमने, लड़कपन के दिनों में, आह! क्या हसीं दिन थे वो भी। 
आज कुछेक बदलवों के साथ थोड़ी और सज गयी है। 

4 comments:

  1. इनके दफ़्तर के बाहर एक गुलमहर का पेड़ है; कालेज के दिनों में ऐसा ही एक गुलमोहर हास्टल के पास भी हुआ करता था।
    इत्तेफ़ाकन ही सही, पर तीर एकदम निशाने पे पड़ता है आज भी।
    :)

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  2. wat else cud be better dear.....if i can take u back to the beautiful memories of ur life and make them a part of my life....:)

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  3. ....kya kahe sabd bhi nahi mil rahe...aisa laga kuch 'aas-paas' ka hi koi 'jana-pahchana'sa kuch apne jehan main aksar uthne wala, kuch yaheen 'aas-pass' ka hi waqya....shabdon main bandh diya ho tumne....kuch anjane se 'aks'...na jane kaun se....khud bhi ab yaad nahi aatey....achanak se bina 'kiradaron' ke aankhon ke samne se gujartey gaye.....jyon-jyon hum tumhare 'alfazon' ki 'tam-tam'par sawar ho kar iss 'shikayat' ke saath humsafar'hue....har ek mode par lagaa Kuch 'Aas-pas' ka kuch 'apna' sa 'izhar' kar gaye tum.............!!
    subhan-allah......

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  4. Amaa baakhuda, hamara dil nikal ke rakh diya tumne apni kalam se.

    Muqarrar ! Muqarrar !

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