Saturday, September 18, 2010

तस्वीर



तुम्हारी एक तस्वीर देख के मन योँ इतराया,
के बस उड़ता-उड़ता फ़िरता है। 

मुझसे पूछा धूमिल* की नज़रों ने,  
है तो इक तस्वीर ही बन्धु,
बात तो'उनकी'आमद की होती,    
ये कागज़ का इक टुकड़ा है। 

प्रेम कवि हो लेश* मान्यवर, 
ना मानो तो एक पुरज़ा है,  
जो मानो तो 'उनका' मुखड़ा है। 

मन सीली सी कुछ रातों में,
चाँद को तकते रहता था,    
'उनकी' इस तस्वीर की बाबत,
अब सपने देखा करता है।

मिलने की'उनसे'आस का सपना, 
'मिलन' से ज़्यादा मीठा है,  
जल का असली स्वाद तो बन्धु,
दो दिन का प्यासा कहता है।

सावन के आने से पहले,    
अकुल* मोर के मन से पूछो,
जब बादल ज़ोर गरजते हैं,  
तब 'उसका' मन क्या करता है।


है तो इक तस्वीर ही प्यारे,
ये मैं भी खूब समझता हूँ,
नहीं फ़ासलों की मोहताज  मोहब्बत, 
इस कागज़ पे ही मरता  हूँ।


*धूमिल : लवलेश मेरे एक परम् मित्र, सखा हैं, लेश जी जैसे 'उज्ज्वल ' कवि का उपनाम 'धूमिल' है, अब वो खुद ही जाने कि वो 'धूमिल' क्यों हैं, शायद श्री सुदामा पान्डेय 'धूमिल'जी के बड़े प्रशन्सक हैं।  
*अकुल : एक काव्यात्मक स्वच्छन्दता  का प्रतीक है, असल माने 'आकुल' या व्याकुल है। 

5 comments:

  1. बंधु.....इस नाचीज़ को.....आपने इतनी "तवज्जो" दी, धन्यवाद् .......ये "धूमिल" उस 'धूल'-धूसरित" मन की कल्पना है....."लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से 'प्रभु' दूर"........
    परन्तु....आपने उपर्युक्त पंक्तियों से दिल ही जीत लिया.........
    अति उत्तम......लगे रहो........बहुत आगे जाओगे......!!

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  2. :)....
    all words fall short of ....


    i think smile should say all that i want to :)

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  3. Devyani, thats a very political comment, :)
    For all readers to know,
    ye tasveer inhi ki hai, inhone hi humari raaton ki neendein haram ki hui hain.

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  4. Amit , the statement was supposed to be politically correct....as i have never faced so much of tareef ....
    ab yahan blush tokar na pa rahi thi to socha smile will explain u things as u knw ham kaisi smile kahan de rahe hote hain....:)

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